🌸 "राम आएंगे ना?" – एक बूढ़ी माँ की प्रतीक्षा 🌸
(एक सच्ची भक्ति की कहानी)
गाँव के एक कोने में एक पुरानी सी झोपड़ी थी। खपरैल की छत, टूटी हुई दीवारें, और आँगन में एक तुलसी का पौधा… यहीं रहती थी – गौरा अम्मा।
बुढ़ापे ने उनके शरीर को कमजोर कर दिया था, आँखें धुंधली हो गई थीं, लेकिन मन में राम बसे थे – जैसे अयोध्या उनके हृदय में ही हो।
हर सुबह सूरज उगने से पहले उठती थीं। तुलसी को जल देतीं, दीपक जलाकर राम नाम की माला लेकर बैठ जातीं। गाँव वालों के लिए वो बस एक बुज़ुर्ग महिला थीं, पर उनके लिए राम – परम सत्य थे।
“राम जरूर आएंगे…”
जब भी कोई पूछता – "अम्मा, अब तुम्हारी आँखें ठीक से देख नहीं पातीं, फिर भी रोज़ फूल क्यों सजाती हो?"
तो अम्मा हल्की मुस्कान के साथ जवाब देतीं — "राम आएंगे बेटा… मेरा राम आएगा… देर है, अंधेर नहीं।"
गाँव वाले हँसते, कोई कहता – “अब वो जमाना नहीं रहा अम्मा।” लेकिन अम्मा का विश्वास कभी नहीं डगमगाया। राम उनके लिए कोई कल्पना नहीं थे, वो उनकी साँसों में बसे थे।
सर्द रात और आखिरी साँसें
एक रात… बहुत सर्दी थी। अम्मा बिस्तर पर थीं – बेहद कमजोर, साँसें धीमी होती जा रही थीं। चारों ओर सन्नाटा था… लेकिन उनके मन में जैसे कोई आंतरिक शांति थी।
उन्होंने अपनी काँपती हुई जुबान से बस इतना कहा — "राम... आएंगे ना?"
और फिर… उनके होंठों पर हल्की सी मुस्कान फैल गई… चेहरे पर अद्भुत तेज़ आ गया…
सुबह का चमत्कार
सुबह जब गाँव वाले अम्मा को देखने आए, तो वो शांत थीं… मानो राम के दर्शन कर चुकी हों।
लेकिन एक बात जिसने सबको चौंका दिया — उनके सिरहाने एक ताज़ा खिला हुआ कमल का फूल रखा था।
गाँव में कहीं कमल नहीं था… ना किसी ने फूल रखा था…
सबने सिर झुका लिया — किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन हर आंख कह रही थी – “राम सच में आए थे…”
भक्ति का अंत नहीं होता
राम किताबों में नहीं रहते… वो तो उन दिलों में रहते हैं, जहाँ सच्चा प्रेम और श्रद्धा होती है।
गौरा अम्मा चली गईं, लेकिन उनकी कहानी आज भी गाँव में सुनाई जाती है – और हर बार सुनने वाला मन ही मन कहता है — “जय श्रीराम!”
🙏 राम नाम सत्य है… और सबसे सुंदर है। 🙏


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